गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
उनका ये जीवन!
बुधवार, 24 अप्रैल 2024
आज के रावण !
शनिवार, 9 सितंबर 2023
तलाश!
तलाश!
आज बहुत दिन बाद
निकली हूँ खोज में
कहीं देखे हैं किसी ने,
मेरे शब्द खो गये,
दूसरे शब्दों में
हिरा गये कहीं।
खोजा मन के हर कोने में,
बाहर भी खोजा गहराई से,
सिर्फ वही नहीं
मेरे भाव भी गुम है
मेरे अंर्त से।
रचूँ क्या?
लिखूँ क्या?
कलम भटक रही है,
खोज में उनके
कोई तो बता दे कि
रचना क्या है?
इतनी विकृति दिख रही है,
विद्रूपता छाई है
जीवन के हर प्रहर में।
कहीं बिखरे बिखरे से घर हैं,
कहीं घर रह गये है,
ईंट गारे के मकान।
एक छत के नीचे
सब गूँगे जी रहे है।
बस आवाजों को तरसते कान
मंद रोशनी के बचे हैं।
@रेखा श्रीवास्तव
शुक्रवार, 25 अगस्त 2023
नई इबारतें !
नई इबारतें
लिखते हैं हम ,
नयी कलम से ,
और खोजते हैं
दास्तान पुरानी।
जंग लगी कलमों की
स्याही भी सूखने लगी हैं ।
कुछ नया , नये जमाने का
लेकर फिर से
दस्तूर तो निभा लें हम।
साथ
तो चलना है,
जमाने के कदम दर कदम ,
कुछ नये दस्तूर तो बना लें हैं।
लिखी कुछअजब से कहानियाँ
लिखी और लिख कर मिटा दिया,
उंगली उठा रहे थे लोग,
ठगे
से रह गये हम।
बहुत मुश्किल है,
इस नये जमाने का चलन,
तुम लिखो कुछ भी
हम नाम अपने करा लेंगे ।
@रेखा श्रीवास्तव
शुक्रवार, 14 जुलाई 2023
तानों का विष!
इन तानों का विष कितना जहरीला है?
पीकर मनुज मरता नहीं घुल जाता है।
रोज रोज दें बस एक खुराक बहुत है,
एक दिन वह नीला जरूर पड़ जाता है।
वह शिव नहीं जो गरल कंठ में रोक सके
जीवन भर नीलकंठ नहीं बन पाता है।
मरता नहीं है जीवन भर घुट घुट कर
मौत का मंजर देख देख कर जाता है।
कैसे हो तुम जग वालों जीने भी नहीं देते,
मरने के लिए भी आजाद नहीं हो पाता है।
मंगलवार, 6 जून 2023
पैमाना !
जीवन में
खुशियों का पैमाना
अपना अपना होता है ।
यह वक्त भी
तय करता है ,
और हालात भी ।
दुधमुँहे को छोड़
माँ काम पर जाती है ।
उस नन्हे की भूख
खोजती है अपनी माँ को ,
अचानक माँ को पाकर
जो खुशी उसे मिली
बयान नहीं उसका ।
तपती सड़क पर
रिक्शा खींचते हुए को
कहीं दिख जाये
जलधारा
उसकी आँखों की चमक
उसको मिल जाती
खींचने की नयी शक्ति
जो खुशी उसे मिली
बयान नहीं उसका ।
माँ का दुलारा / दुलारी
जब आते हैं
छुट्टियों में
चाहे वे कितने ही बड़े हों
जो खुशी माँ की होगी
बयान नहीं उसका ।
आफिस के ए सी चैंबर में
आराम से बैठे
जब पाते है अपना हिस्सा
कितना भी कमा रहे हों
इसके बिना बरकत कहाँ ?
उस मन की खुशी
बयान नहीं उसका ।
कहाँ तक बयान करें
ये खुशी के पल
बाजार में नहीं मिलते
खरीद कुछ भी लें
लेकिन ये
उपहार में नहीं मिलते ।
शुक्रवार, 26 मई 2023
कल को जीना है!
सुनो मुझे कल को जीना है
कोई चलेगा क्या कल में?
मत चलो कोई,
फिर भी मुझे वापस जीना है,
गुजरे हुए जीवन के उन प्यारे लम्हों को,
क्या गुजरा, क्या खोया, क्या पाया?
सब को फिर मिलकर जीना है।
बचपन की अठखेलियाँ
भाई-बहन के वह झगड़े,
शीशम पर पड़ा हुआ झूला
सखियों संग मिलकर
मुझे फिर से झूलना है।
खेल में कब घड़ी लगी थी,
जी भरता कब था?
बंद द्वार को खटका कर,
जब घर आते थे,
फिर वह डाँट का कसैला सा शरबत पीना है,
मुझे फिर कल को जीना है।
गले लग सखियों के फिर,
मिलकर गुट्टे और कड़क्को
फिर से खेल सकूँ
अब कौन कहाँ जीता है?
फिर एक बार सभी संग
उस युग में जाकर
मुझे फिर कल को जीना है ।
कहाँ सभी होते थे अपने,
रखते थे अधिकार सभी ,
डर सिर्फ घरवालों का ही नहीं,
पड़ोसी भी सब चाचा भाई हुआ करते थे,
अधिकार सभी अपना सा रखते थे ,
मुझे उन्हीं दिन में जाना है,
मुझे फिर कल को जीना है।
आज नहीं है कोई अपना सा
सब की नजरें स्वार्थ भरी हैं,
कब छोड़ चल देंगे ?
इस जहर को अब न पीना है
मुझे फिर कल को जीना है।